मंगलवार, 8 मार्च 2011

भाग्य से ज्यादा समय से पहले कुछ नहीं मिलता.

एक किसान मठ में गया। उसने मठ का दरवाजा खटकाया। सन्तरी ने दरवाजा खोला। किसान ने उसकी ओर अंगूरों का एक खुबसूरत गुच्छा बढाया
"भाई ये मेरे खेत के सबसे अच्छे अंगूर है। कृपया ये मेरी तरफ से उपहार के तौर पर स्वीकार करे। "
"अरे मेरे लिए! क्यों? बहुत बहुत शुक्रिया। मै इनको लेकर सीधा गुरूजी के पास ले जा कर रख दूंगा। वे इन्हें पाकर गदगद हो जायेंगे। "
"नहीं ये मै तुम्हारे लिए लाया हु। '
'मेंरे लिए लेकिन मै तो इन उपहारों को पाने लायक ही नहीं हु।'
'जब जब मैने परेशानी में दरवाजा खटखटाया तुमने दरवाजा खोला। हमारी फसले बर्बाद हुई तुमने हमें रोटी खिलाई हमें पिने को चाय दी। मै चाहता हु यह अंगूर का गुच्छा तुम्हारी भलमनसाहत के लिए तुम्हे ख़ुशी दे सके।'
सन्तरी बहुत खुश हुआ। उसने वे अंगूर को सामने रख दिया। पूरी रात उसने किसान की तारीफ में बिता दी। वह रात भर उन्हें दुवाये देता रहा।
सुबह उठ कर उसने तय किया ये अंगूर गुरूजी को समर्पित करना तय किया। जिनके विचार, शब्द उसके लिए एक वरदान की तरह थे।
अंगूरों को पाकर गुरूजी बहुत प्रसन्न हुए। लेकिन उसे ध्यान आया की उसका एक शिष्य बीमार है। उसने सोचा मै यह अंगूर उसे दूंगा, कौन जाने ये अंगूर इसके स्वास्थ में चमत्कारी परिवर्तन ला दे। यह उसको ख़ुशी दे सके।
लेकिन ये अंगूर उस शिष्य के कमरे में भी ज्यादा देर तक नहीं रह पाए। उसने सोचा ;
'रसोइया मेरा कितना ख्याल रखता है मेरी बीमारी में भी मेरे खाने का मेरे स्वास्थ का कितना ध्यान रखता है। मुझे पूरा यकीं है ये अंगूर उसे ख़ुशी देंगे। '
ओर जब रसोइया दोपहर का खाना देने आया, उस शिष्य ने अंगूर उसे दे दिए।
' ये तुम्हारे लिए है। तुम लोगो को वो चीज देते हो जिसकी उनको जिंदगी में सबसे ज्यादा जरुरत रहती है। ये अंगूर तुम्हे सबसे ज्यादा ख़ुशी देंगे । तुम ही समझ सकोगे की इन अंगूरों को क्या करना है।'
अंगूरों को देख कर रसोइया अवाक् रह गया। उसे ये इतने अच्छे लगे की उसने सोचा की इसकी सराहना गुरूजी के सबसे करीब सेवक के अलावा कोई नहीं कर सकता। इस सेवक को मठवासी सबसे अच्छा संत मानते है।
उस सेवक ने ये अंगूर नए नए आये शिष्य को दे दिए ताकि वो नवागंतुक यह सीखे की ईश्वरीय कार्य श्रृष्टि की छोटी छोटी चीजो में दीखे ।
नवागंतुक अंगूर पाकर ईश्वरीय महिमा से भर गया। उसने इतना सुन्दर गुच्छा कभी नहीं देखा था। साथ ही उसे वह दिन भी यद् आया जब उसने पहली बार मठ में प्रवेश किया था। जब सन्तरी ने दरवाजा खोला था जिस प्रेम से उसने मेरा स्वागत किया था ओर मेरा परिचय इस प्रवित्र जगह प्रवित्र लोगो से कराया था।
अँधेरा होने से पहले वह उन अंगूरों को लेकर सन्तरी के पास गया। उससे कहा भैय्या ये अंगूर लो तुम अपना अधिकतर समय अकेले बिताते हो इन्हें खा कर तुम्हे अच्छा लगेगा।
सन्तरी ने उन अंगूरों को ले लिया ओर समझ गया की ये उपहार उसके लिए है। उसने इसे इश्वरिये उपहार समझ कर एक एक अंगूर आन्नद के साथ खाया।
आपका हिस्सा कोई आपसे छीन नहीं सकता। आपका हिस्सा आपको ही मिलेंगा। देने की कला सीखे।

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