रविवार, 9 मई 2010

कोंडागांव यात्रा

आज मै और पप्पू विरजी कोंडागांव गए। मै करीब ५-६ साल बाद कोंडागांव गया। पुरानी यादे भी साथ में थी
कोंडागांव बस्तर जिले में एक सुंदर जगह है। उस तरफ के इलाको को नक्सल इलाके के तौर पर जाना जाता है। लेकिन नक्सल वारदातें जगदलपुर से आगे दंतेवाडा के बीहड़ जंगले में ज्यादा होती है। । वैसे नक्सली सामान्य जनता को परेशान नहीं करते है।
सुबह ७ बजे हम निकले। रास्ते में हमने माकडी ढाबा में रुक कर चाय पी। ११ बजे हम कोंडागांव पहुचे। वहा साथी ग्रुप के हरीजी से मिले।
साथी ग्रुप को बन्छोरजी, हरिजी एवं तिवारीजी ने लगभग २० साल पहले शुरू किया था। उनका उद्देश्य बस्तर की लोक कला और संस्कृति को बढ़ावा देना व उसे बाहरी दुनिया तक पहुचना था। इसके लिए उन्होंने एक एन जी ओ, साथी ग्रुप के नाम से शुरू किया। साथी ग्रुप, गाँव वालो से टेराकोटा आर्ट्स से बने सामान खरीद कर उसे शहरों व कई देशो में बेचते है। बस्तर लोगो की आर्थिक मदद की। साथी ग्रुप ने गाँव- गाँव में लोगो को कुम्हार चाक व कई चीजे, जो उनको इस काम में मदद करती, मुहैया कराइ। आसपास के २५०-३०० गाँवों में उन्होंने उन्नत तकनीक के कुम्हार चाक उपलब्द कराये। उनके प्रयासों से यह कला लोगो में मौजूद है व् इसे बढ़ावा मिल रहा है। आजकल लोग इन चीजो का घर के डेकोरेशन में उपयोग करते है। यह संस्था ईमानदारी से भोले भले गाँव वालो और मार्केट के बीच में एक सेतु का काम कर रही है। यह संस्थान प्रशिक्षण का काम भी करता है। ये बच्चों को टेराकोटा आर्ट की ट्रेनिंग देते है ताकि बच्चे पढ़ते हुआ कमा भी सके। इन्होने स्कूल भी चालु किया है जिसमे पढाई के साथ-साथ प्रक्टिकल ट्रेनिंग भी सिखाई जाएगी। इनका ये कार्य जोर-शोर से चालु है किन्तु भगवान् ने इस संसथान के प्रोमोटर श्री बन्छोरजी को असमय ३-4 साल पहले अपने पास बुला लिया। उनका खालीपन भरा तो नहीं जा सकता किन्तु उस ग़म से निकलने में संसथान को समय लगा। हमारा भी साथी ग्रुप से संपर्क इसी समय रुक सा गया था। अब लगता फिर से इस कार्य को बढाने की जरूरत है। वाहां हमने बच्चों को सिखाते हुआ देखा। उत्कृष्ट तेरा कोटा आर्ट्स देखा।
ढाबे में खाना खाया। ४ बजे वापसी के लिए निकले। खाना खाने के बाद पप्पू विरजी को नींद आती है। हमने कुछ दूर चलने के बाद, गाडी को बाजु में किया . 15 मिनट के लिए झपकी ली। हम रात ८ बजे घर पहुचे .

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